TY - BOOK AU - त्रिपाठी, दिवाकर AU - सिंह, श्रेया TI - स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का योगदान (Swatantrata Sangraam Mein Mahilaon Ka Yogadaan) SN - 9789393285300 U1 - 352.8-0.552:811.214.21 PY - 2023/// CY - नई दिल्ली PB - शिवांक प्रकाशन N1 - स्वतंत्र भारत के लिए जहां पुरुषों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए वहीं महिलाएं भी पीछे नहीं रही। वे अपनी भारत माँ को आजाद कराने के लिए बढ़-चढ़ कर इस स्वतन्त्रता की बलिवेदी में कूद पड़ी। 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की देशभक्ति और आत्मबलिदान की भावना से ओतप्रोत हो ब्रिटिश सरकार भय से काँप उठी। उन्हें ऐसा कोई आभास नहीं था। क्योंकि वे तो हिन्दुस्तानियों को कमजोर और निठल्ला समझे बैठे थे। इसलिए भय का होना लाजिमी था। महान स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई। झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिलाए जाने की घोषणा से रानी लक्ष्मीबाई का खून खौल उठा और उसने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। जगह-जगह पर आन्दोलनों में महिलाएं भाग लेने लगी। बेगम हजरत महल, रानी अवन्तीबाई, बेगम जीनतमहल और अजीजन बाई का नाम उल्लेखनीय है। अंग्रेज सोचते थे कि हिन्दुस्तान के निवासी इतने कर्मठ या योग्य नहीं हैं जो वे अंग्रेजों को चुनौती दे सके। वे सोचते थे कि अब वे हिन्दुस्तान पर कयामत तक राज करेंगे। परन्तु 1857 की क्रान्ति ने अंग्रेजों का सपना चकनाचूर कर दिया। और उनकी प्रतिभा पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। महासंग्राम के दौरान अजीजन बाई ने यह सिद्ध कर दिखाया कि वह वारांगना नहीं अपितु वीरांगना है। अजीजन बाई एक नर्तकी थी परन्तु देशप्रेम ने उसे ऐसा दीवाना बनाया कि वह दिन-रात मिलिट्री की यूनिफार्म पहने क्रान्तिकारियों की मदद करती। इतिहासकारों के अनुसार कानपुर क्रान्तिकारियों की सूची में सबसे ऊपर अजीजन का नाम था। ER -