000 | 02120nam a22002177a 4500 | ||
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005 | 20230810165736.0 | ||
008 | 230324b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789382998709 | ||
082 |
_a81-116"654" _bत्री 78 आ |
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100 | _a सिंह, सुधा | ||
245 | _aआधुनिक भाषा की रूपरेखा | ||
260 |
_aनई दिल्ली _bशिवांक प्रकाशन _c2022 |
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300 | _avi, 184p. | ||
500 | _aवस्तुतः जितने व्यक्ति है, उतनी भाषाएँ है, कारण यह है कि किन्ही दो व्यक्तियों के बोलने का ढंग एक नही होता | इसका प्रमाण यह है कि अन्धकार मे भी किसी की वाणी सुनकर हम उसे पहचान लेते है| यह अंतर केवल बोलने के ढंग से ही नहीं, उच्चारण, शब्द भण्डार, यहा तक की वाक्या विन्यास मे भी देखा जाता है | भाषा के तीन रूप होते है वाणी, भाषा और अधिभाषाय अथार्त भाषा की स्थिति तीन प्रकार स संभव है -- व्यक्ति मे, समुदाय मे, और सामान्य अमूर्त रूप मे | सामान्य या अमूर्त रूप भाषा की वेह व्यापकता है जिस्म भेद का अवकाश नहीं है | | ||
650 | _aभाषा की विविधिता | ||
650 | _aराष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा | ||
650 | _aभारत की भाषा समस्या | ||
650 | _aभाषा विज्ञान | ||
700 | _aत्रिपाठी, मिथिलेश कुमार | ||
942 | _cBK | ||
999 |
_c11403 _d11403 |