000 | 02609nam a22001817a 4500 | ||
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005 | 20240613152333.0 | ||
008 | 240613b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789383980673 | ||
082 |
_a316 _bसिं 48 स |
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100 | _aसिंह, अभय प्रताप | ||
245 | _aसमाजशास्त्र तथा विकास (Samajshastra Tatha Vikas) | ||
260 |
_aदिल्ली _bशिवांक प्रकाशन _c2024 |
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300 | _aviii, 280p. | ||
500 | _aआरम्भ में ‘विकास’ शब्द का उपयोग केवल आर्थिक वृद्धि के संदर्भ में ही किया गया। तत्पश्चात बहु-आयामी परिवर्तनों से गुजरते हुए इसने एक ऐसी अवधारणा का स्थान ग्रहण किया है जिसमें मानव समाज के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं में होने वाली विकास प्रक्रियाएं समाहित हैं। विकास का वास्तविक अर्थ व्यावहारिक एवं विवेकपूर्ण विकास है जिसका तात्पर्य नियमित आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ मानवीय एवं सामाजिक विकास है। विकास की विशेषताएं आधुनिकीकरण की विशेषताओं के समान हैं। ये दोनों प्रक्रियाएं एक-दूसरे की परिपूरक हैं। एक समाज जब तक आधुनिक मूल्यों को नहीं अपनाता, विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता है। आज, विकास की योजनाएं केवल गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में वृद्धि के लिये ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक विकास की संधृतता को सुनिश्चित करने के लिये उद्यत हैं। | ||
650 | _aविकास का समाजशास्त्र | ||
650 | _aसंरचना, संस्कृति और विकास | ||
942 | _cBK | ||
999 |
_c11564 _d11564 |