000 03373nam a2200217Ia 4500
005 20231009172320.0
008 221122s9999 xx 000 0 und d
082 _a615.3-035.27
_bके 27 र
100 _aकेंद्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद
245 0 _aरस-मंजूषा :
_bवैधराज श्री द्वारका त्रिपाठी विरचित (लोक भाषा )
260 _bकेंद्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद
_aनई दिल्ली
_c2005
300 _axvii, 107p.
500 _aप्रस्तुत पुस्तक श्री द्वारका त्रिपाठी द्वारा चिकित्सा के अनेक संग्रह ग्रन्थ ओसे योग संग्रह करके व्ल्चल की भाषा मे लिखी गयी है | पुस्तक के प्रारंभ मे स्वय्म्लेखाक ने इसका उल्लेख भी किया है | पुस्तक 9 विलासों मे पूरी की गयी है | प्रथम विलास मे नाडी परीक्षा एवं अंतिम विलास मे धातु-रस-म्हारासो विषोपविष, खनिज एवं मुक्त, शंख प्रवालादि के शोधन मारण का वर्णन है | बीच के विलासो मे अन्य संग्रह ग्रन्थो तथा चरक, सुश्रुतादि के चिकित्सा स्थान मे दिय गए रोगों के अनरूप अनुभैक योगो का वर्णन किया है | एक- एक विलास के कई रोग साथ ले लिए है | योगो मे रस योग विशेष रूप से लिए है तथा खुच चूर्ण, क्वाथ एवं गुटीकाओ का भी वर्णन है | अनेक प्रकार की गुग्गुल एवं महाशंख वटी जैसे योग भी दिय है | प्रस्तुत पुस्तक मे रोगों की चिकित्सा के साथ, प्रयोग किये जाने वाले योगो के निर्माण की प्रक्रिया भी बताई है, तथा धातु, विष, उपरस, महारास आदि के साथ खनिजो के शोधन, मारण एवं गुण कर्मो का भी वर्णन किया गया है |
650 _aआयुष - आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिध्द और होम्योपैथी विभाग
650 _aमंगलाचरण
650 _aनाड़ी परीक्षा
650 _aनाड़ी भेद
650 _aज्वर प्रकरण
942 _cG
942 _n0
999 _c9937
_d9937