रावत, मनोज
वायु प्रदुषण : कारण एवं निवारण - नई दिल्ली शिवांक प्रकाशन 2022 - v, 280p.
देनिक जीवन मे प्रयोग किये जाने वाले जरुरी साधन वर्तमान समय मे भारत मे होने वाली त्तीव्र जनसँख्या बदोतरी की वजेह से समाप्त होते हा रहे है | परिणामस्वरूप जीवन स्त्रोत दिनप्रति लुप्त होते जा रहे है | धरती पर आवास की समस्या खड़ी हो गयी है | विशव की अधिकांश जनसँख्या ने नगरो मे रहना प्रारंभ कर दिया है | यह सब खुच देखते हु सहेज रूप से अनुमान लगाया जा सकता है की धरती के प्राकृतिक स्रोतों का क्या बनेगा | प्राकृतिक स्रोतों का शोषण स्वार्थी लोग कर रहे है या उन लोगो द्वारा हो रहा है जो गरीबी की रेखा से निचे है वै अपनी मौलिक एवं भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इन संस्थानों का विनाश करने पर लगे हुए है | इसे लोगो की संख्या सबसे अधिक है | इनके अतिरिक्त समृद्धशाली लोग जो संख्या मे कम है परन्तु हवस बड़ी है, वै हवस को पूरी करने केलिए और ज्यादा भोगने की इच्छा से वातावरण से खिलवाड़ कर रहे है | यह स्थिति बहुत आश्चर्यजनक और हास्यस्पद भी है क्योकि जिस पर मनुष्य की सुख सांति और जीवन निर्भर करता है, वेह उसी का बेरहमी से विनाश कर रहा है |
9789383980567
पर्यावरणीय संरक्षण
वायुमंडल
प्रदुषण
614.712 / रा 21 वा
वायु प्रदुषण : कारण एवं निवारण - नई दिल्ली शिवांक प्रकाशन 2022 - v, 280p.
देनिक जीवन मे प्रयोग किये जाने वाले जरुरी साधन वर्तमान समय मे भारत मे होने वाली त्तीव्र जनसँख्या बदोतरी की वजेह से समाप्त होते हा रहे है | परिणामस्वरूप जीवन स्त्रोत दिनप्रति लुप्त होते जा रहे है | धरती पर आवास की समस्या खड़ी हो गयी है | विशव की अधिकांश जनसँख्या ने नगरो मे रहना प्रारंभ कर दिया है | यह सब खुच देखते हु सहेज रूप से अनुमान लगाया जा सकता है की धरती के प्राकृतिक स्रोतों का क्या बनेगा | प्राकृतिक स्रोतों का शोषण स्वार्थी लोग कर रहे है या उन लोगो द्वारा हो रहा है जो गरीबी की रेखा से निचे है वै अपनी मौलिक एवं भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इन संस्थानों का विनाश करने पर लगे हुए है | इसे लोगो की संख्या सबसे अधिक है | इनके अतिरिक्त समृद्धशाली लोग जो संख्या मे कम है परन्तु हवस बड़ी है, वै हवस को पूरी करने केलिए और ज्यादा भोगने की इच्छा से वातावरण से खिलवाड़ कर रहे है | यह स्थिति बहुत आश्चर्यजनक और हास्यस्पद भी है क्योकि जिस पर मनुष्य की सुख सांति और जीवन निर्भर करता है, वेह उसी का बेरहमी से विनाश कर रहा है |
9789383980567
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प्रदुषण
614.712 / रा 21 वा