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किसी समय भारत मे अनेक एसी बोलिया और विभाषाए प्रचलित थी जिनका सहियातियक रूप ऋग्वेद की भाषा मे सुरक्षित है | इन्ही कथित विभाषाओ मे से एक को मध्यप्रदेश के विधानों ने संस्कृत बनाकर राष्ट्रभाषा का पद दे दिया था | इस पुस्तक मे भाषा-विज्ञान उस शास्त्र को कहते है जिसमे भाषामात्र के भिन्न-भिन्न अंगो और स्वरूपों का विएचन तथा निरूपण किया जाता है | मानुष किस प्रकीर बोलता है, उसकी बोली का किस प्रकार विकास होता है, उसकी बोली क का भाषा मे कब, किस प्रकार और कैसे-कैसे परिवर्तन होता है, किसी भाषा मे दूसरी भाषाओ के शब्द आदि किन- किन नियमो के अधीन होकर मिलते है, कैसे तथा क्यों समय पाकर किसी भाषा का रूप और कार्य और हो जाता है तथा कैसे एक भाषा तथा कैसे एक भाषा परिवर्तित या विकसित होकर पूर्णतया स्वतंत्र एक दूसरी भाषा का रूप धारण कर लती है | इन विषयों मे तथा इनसे सम्बन्ध रखने वाले और बस उप-विषयों मे तह इनसे सम्बन्ध रखने वाल और बस उप-विषयों का भाषा-विज्ञान मे समावेश होता है|

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