समाजशास्त्र तथा विकास (Samajshastra Tatha Vikas)
Material type: TextPublication details: दिल्ली शिवांक प्रकाशन 2024Description: viii, 280pISBN: 9789383980673Subject(s): विकास का समाजशास्त्र | संरचना, संस्कृति और विकासDDC classification: 316Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|
Books | NIH Rorkee Library | 316 सिं48स (Browse shelf (Opens below)) | Available | 12915 |
आरम्भ में ‘विकास’ शब्द का उपयोग केवल आर्थिक वृद्धि के संदर्भ में ही किया गया। तत्पश्चात बहु-आयामी परिवर्तनों से गुजरते हुए इसने एक ऐसी अवधारणा का स्थान ग्रहण किया है जिसमें मानव समाज के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं में होने वाली विकास प्रक्रियाएं समाहित हैं। विकास का वास्तविक अर्थ व्यावहारिक एवं विवेकपूर्ण विकास है जिसका तात्पर्य नियमित आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ मानवीय एवं सामाजिक विकास है। विकास की विशेषताएं आधुनिकीकरण की विशेषताओं के समान हैं। ये दोनों प्रक्रियाएं एक-दूसरे की परिपूरक हैं। एक समाज जब तक आधुनिक मूल्यों को नहीं अपनाता, विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता है। आज, विकास की योजनाएं केवल गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में वृद्धि के लिये ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक विकास की संधृतता को सुनिश्चित करने के लिये उद्यत हैं।
There are no comments on this title.